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फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र

यूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स

प्रकाशक : कानपुर पब्लिशिंग होम प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 307
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर

प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?

उत्तर -

प्राचीन कालीन शिक्षा का अर्थ

भारतीय शिक्षा का आरम्भ आज से लगभग 4000-5000 वर्ष पूर्व हुआ था। वैदिककाल की शिक्षा आधुनिक काल की शिक्षा से पूर्णतः भिन्न थी। वैदिक काल की शिक्षा एक आदर्श शिक्षा थी. जो कि समाज की आत्मा का बोध कराती थी जिसका मूल-मन्त्र धर्म था। उस समय की जो शिक्षा पद्धति थी वह न केवल 'इहलोक' के लिए बल्कि पारलौकिक शक्तियों के विकास के लिए भी थी। इसी के कारण आधुनिक युग में शिक्षा को विद्या, ज्ञान, विवेक, बोध एवं विनय आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। इसकी पुष्टि संस्कृत की निम्नलिखित सूक्तियों के द्वारा की जाती है -
(1) सा विद्या या विमुक्तये।
 अर्थात् विद्या वह है जो मुक्ति प्रदान करे।
(2) विद्याधनं सर्व धनम् प्रधानम्।
 अर्थात विद्या सभी प्रकार के धनों में श्रेष्ठ धन है।
(3) विद्या विनयम ददाति।
 अर्थात् विद्या विनय प्रदान करती है।
(4) येषां न विद्या न तपो न दान,
 ज्ञानं न शील न गुणो न धर्मम्।
 ते मर्त्यऽलोके भुविभारभूता,
 मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति।

अर्थात् ऐसे मनुष्य जो कि विद्या, ज्ञान, शील, गुण एवं धर्म से रहित हैं, वे इस मृत्यु लोक पर भार हैं क्योंकि वे मानव रूप में पशु के समान जीवन-यापन कर रहे हैं।
उपरोक्त सूक्तियों से यह ज्ञात होता है कि 'शिक्षा' एक ऐसा प्रवाह है जिसकी सहायता से मानव लौकिक जगत के कार्यों के सम्पादन के साथ-साथ अपनी चरम उन्नति के लिए भी प्रयास करता है।
डॉ. ए. एस. आल्टेकर के कथन के अनुसार - "शिक्षा प्रकाश का वह स्रोत है, जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारा सच्चा पथ-प्रदर्शन करती है।

वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श

डॉ. अल्तेकर के शब्दों में, “ईश्वर भक्ति तथा धार्मिकता की भावना, चरित्र निर्माण, व्यक्तित्त्व का विकास, नागरिक तथा सामाजिक कर्त्तव्यों का पालन, सामाजिक कुशलता की उन्नति और राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण एवं प्रसार प्राचीन भारत में शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श थे।" यद्यपि डॉ. अल्तेकर के उक्त विचार से आज के सभी शिक्षाविद् सहमत हैं। तथापि वैदिककालीन शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षा के स्वरूप तथा उसकी गम्भीरता से यह स्पष्ट ऐहसास होता है कि तत्कालीन शिक्षा के उक्त उद्देश्यों के साथ-साथ एक अति महत्त्वपूर्ण उद्देश्य तथा आदर्श ज्ञान का विकास था। तत्कालीन शिक्षा के उद्देश्यों को हम निम्नांकित शीर्षकों के माध्यम से व्यक्त कर सकते हैं-
1. स्वास्थ्य का संरक्षण एवं संवर्द्धन - वैदिककालीन शिक्षा एक अन्य महत्त्वपूर्ण उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है और मोक्ष की प्राप्ति के लिए सबसे पहली आवश्यकता है स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन। यही कारण है कि तत्कालीन गुरुकुलों में शिष्यों के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के संरक्षण एवं संवर्द्धन पर विशेष ध्यान दिया जाता था। ब्रह्ममुहूर्त में उठना, दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर, व्यायाम करना, सादा भोजन करना, वासना से दूर रहना, उचित आचार-विचार की ओर उन्मुख रहना, सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का पालन करना, काम, क्रोध, लोभ, मोह से दूर रहना इत्यादि की शिक्षा बालकों को स्वास्थ्य के संरक्षण एवं संवर्द्धन के उद्देश्य से दी जाती थी।
2. सामाजिक एवं राष्ट्रीय कर्त्तव्यों का बोध एवं पालन-वैदिक काल में राष्ट्रीयता की भावना का अत्यधिक सम्मान तथा महत्त्व था। यही कारण है कि वैदिककालीन शिक्षा शिष्यों को समाज एवं राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्यों का ज्ञान कराया जाता था। साथ ही उनके पालन के लिए प्रेरित एवं प्रशिक्षित किया जाता था। गुरुकुलकालीन शिक्षा पूर्ण होने के उपरान्त होने वाले समावर्तन समारोह में गुरु अपने शिष्यों को उपदेश देते थे जिसमें वे छात्रों को माता-पिता की सेवा करने, समाज की सेवा करने, गृहस्थ जीवन के कर्त्तव्यों का पालन करने तथा पितृ ऋण एवं देव ऋण से मुक्त होने का उपदेश देते थे।
3. संस्कृति का संरक्षण एवं विकास- वैदिक काल में शिक्षा का एक उद्देश्य अपनी संस्कृति का संरक्षण विकास एवं हस्तान्तरण करना भी था। उस काल में गुरुकुलों की सम्पूर्ण कार्य पद्धति अर्थात् रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज और मूल्य सभी धर्म प्रधान थे। स्त्रियों को भी वेदों की शिक्षाएँ दी जाती थीं। लोग गृहस्थ आश्रम के जीवन-यापन के उपरान्त वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करते थे, जहाँ वे जंगलों में भी चिन्तन, मनन तथा सिद्धिध्यासन करते थे। इससे देश की संस्कृति का संरक्षण तथा विकास होता रहा।
4. नैतिक एवं चारित्रिक विकास-वैदिक काल में चरित्र निर्माण से तात्पर्य मनुष्य को धर्म सम्मत आचरण में प्रशिक्षित करने से लिया जाता था। उसके आहार-विहार तथा आचार-विचार को धर्म के आधार पर उचित दिशा देने से लिया जाता था। उस समय बच्चों के नैतिक एवं चारित्रिक विकास के लिए उन्हें प्रारम्भ से ही धर्म और नीतिशास्त्र की शिक्षा दी जाती थी।
5. जीविकोपार्जन एवं कला कौशल की शिक्षा-वैदिककालीन शिक्षा मं ज्ञान आध्यात्मिक शिक्षा के साथ-साथ जीविकोपार्जन एवं कला-कौशल की शिक्षा की उत्तम व्यवस्था का प्रबन्ध था क्योंकि उस काल की शिक्षा का एक उद्देश्य शिष्यों को स्वावलम्बी बनाने का तथा कला-कौशलों के ज्ञान का विकास करने का भी था। प्रारम्भिक वैदिक काल में शिष्यों को उनकी योग्यतानुसार कला-कौशलों की शिक्षा दी जाती थी। जबकि उत्तर वैदिक काल में यह कर्म एवं योग्यता पर आधारित एवं शिक्षा जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था में बदल गयी थी जिसमें ब्राह्मणों को कर्म काण्ड, आध्यात्म, अध्ययन, अध्यापन, क्षत्रियों को शासन कार्य, युद्ध कौशल, वैश्यों को कृषि, पशुपालन एवं वाणिज्य की शिक्षा दी जाने लगी थी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
  4. प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
  6. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
  7. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
  8. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
  9. प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
  10. प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
  26. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
  27. प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
  29. प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
  30. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  33. प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
  34. प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
  36. प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  37. प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
  46. प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

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